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सफलता कैसे प्राप्त करें ?

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दोस्तों! सफलता किसे प्यारी नहीं होती ? परन्तु क्या सभी लोग सफलता प्राप्त कर पाते है ? जी नहीं...तो आखिर सफलता का मूलमंत्र क्या है ? वह है....स्व अनुशासन क्योंकि सफलता का जन्म हमारे स्वयं के अनुशासन से होता है और इसे प्राप्त करने के लिए इसमें रमना पड़ता है| अतः सफलता की दौड़ में विजेता बनने के लिए हमारा स्वयं का अनुशासित होना अति आवश्यक है|  कुछ लोग दूसरों को मिटाकर, दूसरों को नुकसान पहुँचाकर, दूसरों को दर्द देकर बड़े बनने का स्वप्न देखते है उनका असफल होना तो तय है लेकिन इसके कारण उन लोगों को थोड़ी तकलीफ उठानी जो सच्चाई, ईमानदारी और न्याय के पक्षधर होते है| लेकिन यह तो कहा ही गया कि यदि अच्छे रास्ते पर चला जाए तो देर- सबेर परिणाम अच्छा ही होता है|  वास्तव में अगर देखा जाए तो सफलता भी इतनी आसानी से नहीं मिलती| सफल होने की दौड़ में हम न जाने कितनी बार गिरते हैं लेकिन हमे गिरने की चिंता नहीं करनी चाहिए अपितु कोशिश यह करनी चाहिए कि जितनी बार भी गिरे, उतनी बार उठ सकें|  कुछ लोग इन छोटी-छोटी असफलताओं को अपना प्रारब्ध मान हैं और अपना आत्मविश्वास खो देते हैं|                                 

हिन्दी है हिन्द की धड़कन

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हिंदी मात्र एक भाषा नही है, हमारी मातृभाषा भी है परंतु आज की स्थिति यह है कि हम हिन्दी बोलने मे लज्जा महसूस कर रहे है| लोग कहते है कि "हम आजाद हो गये, अरे! अंग्रेजो से  छूटे तो अंग्रेज़ी के गुलाम हो गये|" आजादी के 70 साल बाद भी हम मानसिक रूप से गुलामी के जंजीर मे जकड़े हुए है पर हम भूल रहे है कि  "जन-जन की भाषा है हिन्दी,    भारत की आशा है हिन्दी,    जिसने पूरे देश को जोड़े रखा,    वह मजबूत धागा है हिन्दी|" अतः "हिंदी का करे सम्मान   है यह प्रेम का दूजा नाम,   हर देश का सम्मान है मातृभाषा   गर्व से कहो है हमारी हिन्दी भाषा।" क्योंकि जब तक हम अपने हिन्द की धरोहर अर्थात्  हमारी मातृभाषा हिंदी का सम्मान नही करेंगे तब तक हम इसे पूरे विश्व मे सम्मान नही दिला पायेंगे। जय हिंद! द्वारा:- अम्बुज उपाध्याय 

वर्षा की बदली हूँ मैं

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कविता कवि की कल्पना का परिणाम होती है| कवि ह्रदय कल्पना का और कल्पना कविता की जन्मस्थली होती है| अतः कविता ह्रदय की गहराई में उपजे भावों की सुन्दर मोती है जिसका मनोहारी चित्रण कुछ इस प्रकार किया गया है:- वर्षा की बदली हूँ मैं मैं शब्द को मणिक बनाऊँ  सृष्टि की प्यास बुझाऊँ, मुझे देख के मन हर्षेगा  वर्षा की बदली हूँ मैं | मैं पलक पर शब्द झुलाऊँ  और सोंधी इत्र उड़ाऊँ, मुझे देख के मन बोलेगा  सावन की कजरी हूँ मैं | मैं शब्द-जाल भी बिछाऊँ  और हृदय-सितार बजाऊँ, मुझे देख के वो समझेगा  एक अनपढ़ पगली हूँ मैं | मैं शब्द की गंग बहाऊँ  और ह्रदय के कमल खिलाऊँ, मुझे देख के दिल उछलेगा  सुनहरी मछली हूँ मैं | मैं अश्रु से झील बनाऊँ  और शब्द की नाव चलाऊँ, मुझे देख के तपन बुझेगा  एक अधजल गगरी हूँ मैं | द्वारा:- अम्बुज उपाध्याय 

बचपन खो गए : एक मार्मिक शब्द चित्र

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        Diary of dreams बाल श्रम के विरुद्ध आवाज उठाती ज्वलंत कविता प्रस्तुत करते है :- बचपन खो गए मोरपंख-से बंद किताबों में श्रम के काँटे यूँ ही चुभ गए कोमल हाथों में  किसी नयन के मोती अश्रु बन कर बिकें बाजारों में बचपन खो गए मोरपंख-से बंद किताबों में सिसक रहीं है नन्ही कलियाँ इन काले हाथों में याद आता है माँ का आँचल द्रवित नजारों में बचपन खो गए मोरपंख-से बंद किताबों में अब कड़कानी होगी बिजली इन काली घटाओं में नाचेगा तब मन-मयूर हो मस्त फिजाओं में बचपन खो गए मोरपंख-से बंद किताबों में द्वारा- अम्बुज उपाध्याय 

DIARY OF DREAMS : a place to get entertained

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